आज भी खामोश हैं..
सरकारी तंत्र से दूर
बस आज भी नेताओ को,
दोष देने में मशगूल हैं.
रोड़े बनी नहीं तो उसमे दोषी ढूढ रहे हैं,
सरकारी तंत्र से दूर
बस आज भी नेताओ को,
दोष देने में मशगूल हैं.
रोड़े बनी नहीं तो उसमे दोषी ढूढ रहे हैं,
और अगर बन जाएं तो..
उनमें दोष ढूढ रहे हैं
गांधी के इस देश में बस दोष देने में मशगूल हैं.
मतदान के दिन छुट्टी मना रहे हैं,
अपने कीमती मत को यू ही गवा रहे हैं.
कुछ मतदान पत्र न होने की दुहाई दे रहे हैं,
तो कुछ एक नहीं अनेकों वोट दे रहे हैं.
कुछ देश को बदलना चाहते हैं
तो मतदान कर रहे हैं
पर अपने निर्वाचन क्षेत्र की जानकारी लिए बिना ही
वंशानुगत कांग्रेस या भाजपा को वोट दे रहे हैं
पर मानव प्रवर्ति तो देखिए
एकता का कितना अच्छा उदाहरण है
वोट डाले या नहीं
सब सरकार का ही दुखड़ा रो रहे हैं.
कभी खुद कुछ करके तो देखिए
एक बार आवाज़ उठाकर तो देखिए
जो मतदान नहीं करते
एक बार करके तो देखिए
जो करते हैं
थोड़ी जानकारी लेकर तो देखिए
सही उम्मीदवार नहीं होने पर
"इनमे से कोई भी नहीं" के चिह्न पर
अंगुली रखकर तो देखिए
क्या पता कुछ बदलाव आ जाए
अगली सरकार कुछ नया कर जाए
पर पहले कदम उठाकर तो देखिए
सरकार को कोसने से पहले
खुद के अंदर झांककर तो देखिए ….
अपने मन मंदिर का दीपक जलाकर तो देखिए
प्रस्तुतकर्ता: अखिल तिवारी
No comments:
Post a Comment