पंक्ति प्रभावशाली है
चरित्र में नहीं तो चलिए
विज्ञापन ही सही
दहेज- या काहिए
वर दक्षिणा
कलंक हमारे समाज पर
प्रश्नचिन्ह मानव जात पर
शापित है
कुछ इस कदर
शिक्षा भी बेअसर
पुरुष प्रधान इस समाज में
कभी भ्रूण हत्या
तो कभी
दहेज भाँति जघन्य कुकृत्य पर
आहुतियाँ देती स्त्री
कहीं कोडियों के भाव बिकी
तो कहीं अपने बचाव में
आत्महत्या से मिटी
कहने को तो शिक्षित वर्ग
यहां गैर-कानूनी की भी परख यहां
ढिंढोरा पीटे दहेज एक कुप्रथा
फ़िर भी स्त्री का करते अपमान सदा
कैसे संकिर्ण मानसिकता लिये
ऐसे तुच्छ कार्य किये. …..
समाज विकास करेगा?
कब तक नारी को दयनीय स्थिति देगा?
जागिये मित्रों जागिये !
स्त्री … जीवन की नीव है …
आज से नहीं युगों युगों से…
आज से नहीं युगों युगों से |
प्रस्तुतकर्ता: भावना जोशी
Education is just changing the literacy rate i Guess . . . . We don't follow what we learn. ..
ReplyDeleteIts time we should start up with a practical approach towards things . . .