कठिन परिश्रम और अत्यंत आलोचनाओं का शिकार
सोने की चिड़िया कही जाने वाली
भारत भूमि की
क्या यही कल्पना की होगी उन्होंने?
स्वतंत्रता सेनानिओं या राष्ट्रपिता बापू ने?
क्या यही उनके लिए रहा होगा
आज़ादी का मतलब?
आज देश में सब कुछ है
जी हाँ सबकुछ
भ्रष्टाचार, गरीबी और असाक्षरता
स्वतंत्र है यह देश और यहाँ के लोग
परन्तु
तात्पर्य यह तो कदापि नहीं कि
स्वतंत्र हैं
भ्रष्टाचार, गरीबी, असाक्षरता और घूसखोरी,
निरंतर फैलते जाने के लिए |
पाश्चात्य संस्कृति के आवेश में
आज अपनी सीमाएं लाँघ रहे हैं
बलात्कार के मामले आज
जगह-जगह
प्रकाश में आ रहे हैं |
कुछ विद्वानों का कहना है-
हम अपनी परंपरा और संस्कृति भूल गए हैं
परन्तु यह सत्य नहीं,
रोज संस्कृति का ढिंढोरा पीट रहे,
दूसरों को संस्कृति का पाठ दे रहे है,
वास्तविकता तो यह है कि,
उसे अपनाने से हम
दो कदम पीछे ले रहे हैं |
यूँ तो लोकाचारी वेशभूषा में
कुर्ता-पैजामा भी आता है,
पर लोग क्या कहेंगे सोचकर
पहनने से मन कतराता है |
हर-दम मदद करने कि
सोच लिए चलते हैं,
पर दुनियादारी के आवेश में
वक्त आने पर,
निर्णय बदल लिया करते हैं |
कुछ करने से पहले ही निष्कर्ष निकाल
कल पर टाल दिया करते हैं |
रूढ़िवादी परम्पराओं से अवगत हैं
पर गलत ज्ञात होते हुए भी उसे बदलना नहीं चाहते,
स्त्री को एक सामान दर्जा देने कि बात कहते तो हैं
पर अपने पुरुष प्रधान समाज की
रूढ़िवादी सोच बदलना नहीं चाहते |
आलोचना करते- बस जीवन व्यतीत करते हैं
पर खुद के अंदर झांककर कभी देखना नहीं चाहते |
कारण-
सिर्फ एक
कहीं झाँकने से अपने अंदर का सच नजर ना आ जाए
और अपने से नजरें मिलाने मे ही कहीं
हम असक्षम न हो जाएं |
सोचकर निष्कर्ष निकालना बंद कीजिये मित्रों,
कभी वास्तविकता में जीकर तो देखिये|
क्या पता आप कामयाब ही हो जाएं
क्या पता इसी प्रकार एक बदलाव आ जाए
और क्या हुआ अगर विफल हो गए तो
विफलता तो जीवन का अमृत है
यही तो हमें सफलता की सीढ़ी चढ़ना सिखाता है |
बस जरुरत हैं अपने अंदर झाँकने की
आत्मविश्वास की डोर को मजबूत करने की
"प्रोत्साहन देने वालों और अपने गुरुजनों का
आदर करने की,
आदर करने की,
अच्छे काम करते रहने के लिए
प्रेरित होते रहने की" |
क्या हुआ अगर एक बार असफल हो गए
क्या हुआ अगर एक बार असफल हो गए
आखिर असफलता मे खुद ही सफलता छिपी है,
जरुरत है
तो सिर्फ दूरदर्शिता की
सिर्फ दूरदर्शिता की |
प्रस्तुतकर्ता: अखिल तिवारी
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