अब भी …
देखा…या नहीं ..
चलिये अनदेखा ही सही|
पर सोचेंगे तो जरूर,
सोचना ही पडेगा|
आखिर मौन तो इसका उपाय नहीं,
कल कोई और था आज आप हैं |
अब तो जागिए|
भ्रष्टाचार स्वयं में अभिशाप है,
कब तक तृष्णा से लिपटे,
भोग विलास को इतना सीचेंगे स्वार्थ से |
कब तक
कब तक मिलावटी रेत से बनी इमारतों में,
सच्चित्र बेचेंगे पूरे मान से |
सच्चे सदाचार को छोड पीछे
जन चेतना सोई जान पड़ती है |
जागरूकता तो दूर
यहां तो
जागृति की सोच पर भी कीमत लगती है |
अचरज होता है आज कहते हुए
अचरज होता है आज कहते हुए-
"भारत भाग्य विधाता"
|
प्रस्तुतकर्ता: भावना जोशी
No comments:
Post a Comment