देखो , कैसे खड़े हैं वो
सर ऊँचा कर हरियाली से ...
देखो , कैसे खड़े हैं वो
शांतिप्रिय स्वरताली से ...!
छाव के जैसे कोमल बन कर
सर ऊँचा कर हरियाली से ...
देखो , कैसे खड़े हैं वो
शांतिप्रिय स्वरताली से ...!
छाव के जैसे कोमल बन कर
छाव के जैसे सजग बनो ..
वृक्ष बनो तुम , वृक्ष बनो तुम
वृक्ष के जैसे अडिग बनो ...!!
भूल जाओ तुम 'स्व ' का मतलब
सीमाओं को पर करो ...
सोचो अनंत पर ,चलो अनंत पर
अनंत पे रहके काम करो ...!
तुम हो अद्भुत अद्वितीय
अविनाशी बन पथ प्रशस्त करो ...
वृक्ष बनो तुम , वृक्ष बनो तुम
वृक्ष के जैसे अडिग बनो ....!!
सूरज बन कर बिखर पड़ो
और अंधकार का हरण करो
अग्रिम इच्छा किये बिना ही
वर्तमान में करम करो ..!
विवेकशीलता अपनाकर
सुदृढ़ सुसज्जित सुयश बनो
वृक्ष बनो तुम , वृक्ष बनो तुम
वृक्ष के जैसे अडिग बनो ....!!
वृक्ष बनो तुम , वृक्ष बनो तुम
वृक्ष के जैसे अडिग बनो ...!!"
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