माटी की ऐसी मूरत थी वो ..
सबसे प्यारी सूरत थी जो ..
ईश्वर ने जिसपर हाथ रखा ..
निर्माण का उसे वरदान दिया ..
चहकती थी .. जब हस्ती थी ..
उपवन उपवन आती थी बहार ..
महक उठते सब मौसम त्यौहार ..
आज ऐसा छलनी किया उसे ..
सबसे ज़्यादा दुःख दिया उसे ...
जिसने हमको जीवन दिया ..
उसी स्वरुप को अपने स्वार्थ के ..
अपने लालच के वष में आकर ..
मान सम्मान का नाश किया ..
उस देवी का अपमान किया ..
किस आँचल की छाव में,
तुम अपने जीवन के पौधे को,
कड़क धूप से बचाओगे ..
जब रूठ जाएगी वो तुमसे ..
किस गोद में सर रख पाओगे ..
किसे तुम माँ बुलाओगे ..
किस पर हक़ जाताओगे ..
किससे प्यार तुम पाओगे ..
अब उठो और एक प्रयास करो ..
उस मूरत का सम्मान करो .
उस जननी का सम्मान करो ..
सबसे प्यारी सूरत थी जो ..
ईश्वर ने जिसपर हाथ रखा ..
निर्माण का उसे वरदान दिया ..
चहकती थी .. जब हस्ती थी ..
उपवन उपवन आती थी बहार ..
महक उठते सब मौसम त्यौहार ..
आज ऐसा छलनी किया उसे ..
सबसे ज़्यादा दुःख दिया उसे ...
जिसने हमको जीवन दिया ..
उसी स्वरुप को अपने स्वार्थ के ..
अपने लालच के वष में आकर ..
मान सम्मान का नाश किया ..
उस देवी का अपमान किया ..
किस आँचल की छाव में,
तुम अपने जीवन के पौधे को,
कड़क धूप से बचाओगे ..
जब रूठ जाएगी वो तुमसे ..
किस गोद में सर रख पाओगे ..
किसे तुम माँ बुलाओगे ..
किस पर हक़ जाताओगे ..
किससे प्यार तुम पाओगे ..
अब उठो और एक प्रयास करो ..
उस मूरत का सम्मान करो .
उस जननी का सम्मान करो ..
प्रस्तुतकर्ता: अंशिका वर्मा
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