ये प्रकृति एक देन है.
पर क्या यही वो देन है,
जिसकी संरचना की गई थी?
जी हाँ ये प्रकृति तो वही है
परन्तु बहुत कुछ बदल गया है
पर क्या यही वो देन है,
जिसकी संरचना की गई थी?
जी हाँ ये प्रकृति तो वही है
परन्तु बहुत कुछ बदल गया है
प्रदूषण कर-कर के हमने
स्वर्ग रुपी धरती को नर्क बना दिया है
किसी तरफ प्रदूषण तो किसी तरफ आतंकवाद है
पूरी धरती स्वर्ग थी पर
भ्रष्ट यहाँ इंसान है
अपने ही स्वार्थ के लिए
मनुष्य ने फैलाये ये दानव रुपी राक्षश हैं
जो शब्दावली मे
प्रदूषण तथा आतंकवाद है
हर समय हर दिन घुट-घुट कर जी रहा इंसान है
वो समय दूर नहीं जब,
एक कदम पर धरती और दूसरे पर चाँद है
प्रार्थना करता हुँ
की ऐसा दिन कभी ना आए
वरना,
वरना
चाँद का भी
ये स्वार्थी मनुष्य वही हाल करेंगे जो अभी धरती का है
वहाँ भी बन जाएंगी सीमाएं और हम धरती पर से कहेंगे
वह देखो मित्रो चाँद पर भी काफी बड़ा दाग है
अभी भी वक़्त है की हम सुधर जाएं
वरना भगवान की देन ये धरती कहीं
मनुष्य के राक्षसत्व की भेंट न चढ़ जाए
विज्ञान का इतना ज्ञान है
फिर भी मनुष्य अज्ञानी है
जो ज्ञानी होता मनुष्य तो
क्यों प्रकृति की बर्बादी है
हज़ारो लाखो की संख्या में
कट रहे रोज वृक्ष हैं
धरती पे ऑक्सीजन की घटती मात्रा
इसी का ही तो प्रकोप है
वर्षा ऋतू मे बरसात नहीं और
शीतकाल मे धूप है
फलस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग धरती पर
इसी का ही तो प्रकोप है
जगह-जगह हो रहा भूस्खलन
जगह-जगह निर्माण है
जाग मनुष्य जाग कहा छुपा तेरे
अंतर्मन का ज्ञान है
जाग मनुष्य जाग कहा छुपा तेरे
अंतर्मन का ज्ञान है .
प्रस्तुतकर्ता: अखिल तिवारी
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