धरती पर है भव दानवता
निर्मल उज्वल श्यामल धरती,
हर दम यही पुकार है करती
इतना पापी न बन ऐ मानव
इंसान बन ना बन दानव
यह धरती कितना है देती
बदले में तुमसे क्या कुछ लेती?
जो जीवन ईश्वर प्रदत है
उससे ये कैसा खिलवाड़
इतनी कच्ची कभी नहीं थी
मानवता की ये नेवाड
ना कुछ तेरा ना कुछ मेरा
ये संसार एक रैन बसेरा
जाते जाते कुछ कर जाओ
धरती का अस्तित्व बचाओ
सब मिलकर संकल्प उठाओ
इस धरती को स्वर्ग बनाओ
कर्त्तव्य है ये ना कोई समझोता है
आजमाकर देखो क्या होता है
मन का मेल अगर सब घुल जाए
बस ये ही तो मानवता है
बस ये ही तो मानवता है...
प्रस्तुतकर्ता: उषा तिवारी
No comments:
Post a Comment