पता न था एक दरिया होगा
राह में, जिसको पार करना
बिलकुल भी आसान न होगा.
दर्द थे उसमे भरे पड़े,
खतरे भी थे बड़े बड़े
राह में, जिसको पार करना
बिलकुल भी आसान न होगा.
दर्द थे उसमे भरे पड़े,
खतरे भी थे बड़े बड़े
नन्ही सी जो जान चली थी,
इन सब बातो से बेफिक्र
अपने ख्वाबो के पीछे भागी,
उड़ती सी वो ढूढ़ रही थी,
अपने सपनो का एक घर.
दरिया मे जब पाँव पड़े तो
सिहर उठी वो नाज़ुक रूह.
लहरें उसे उठा रही थी
इधर-उधर झूला रही थी
हाथ-पॉव वो मार रही थी
अपनी सांस सँभालने को
पूरी जान लगा रही थी.
लहरो के थपेड़ो ने,
दिए थे उसे कितने जखम
रोती थी वो सिसक सिसक कर
मौत का पल भी हो रहा भरम.
कोई दुआ फिर काम न आई
मौत ने अपनी प्रीत निभाई
लिया उसे आगोश मे अपने,
टूट गए थे सारे सपने,
काश उसे कोई तैरना सिखाता
या उस दिन कोई माझी आता
अपनी नाव के सहारे से जो
उस बच्ची की जान बचाता
उसे दरिया से दूर लेजाता
फिर से उसे जीना सिखाता
ज़िन्दगी मे जान उसकी लौटाता
फिर से उसे जीना सिखाता
प्रस्तुतकर्ता अंशिका वर्मा
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